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जनतंत्र और हमारा संविधान.

,एकता या अनेकता
,एकता या अनेकता
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सभी जानते हैं हमारा संविधान का मूलाधार इंग्लैंड का वेस्टमिंस्टर है. वहाँ की तरह ही हमारी पार्लामेंट्री पद्धति पर सरकार है. यह दूसरी बात है की लगभग असफल होती दिख रही है. परन्तु यदि हमने एक तरीका अपनाया तो उसपर पूरी तरह क्यों नहीं चल रहे? ब्रिटेन में यदि आज की सी स्थिति होती सरकार की तो वहाँ के प्रधान मंत्री कभी के चुनाव कराने की सिफारिश कर चुके होते. यह भी नहीं की वहाँ के लोगों को सत्ता का लोभ नहीं है.परन्तु वे कुर्सी से ऐसे नहीं चिपके रहते की जब तक धक्का मारकर न हटाया जाए हटेंगे ही नहीं.ममता दीदी ने जो कुछ भी कहा उसमे तनिक भी अतिशियोक्ति नहीं है और न कुछ भी झूट. रामगोपाल यादव का यह कथन भी सही है की कांग्रेस सरकार यह समझ रही है की उनके पास दोतिहायी बहुमत है. जनता का यह सोच भी सही ही लगता है की ये लोग येनकेन प्रकारेन २०१४ तक गद्दी छोड़ना नहीं चाहते. क्या इसलिए की घोटाला करते करते अभी पेट नहीं भरा? जो भी हो यह निश्चित है की कांग्रेस ने संविधान की जितनी छीछालेदर की है देश में किसी ने भी नहीं.
क्या ऐसा तो नहीं की जिसके पास वास्तविक ताकत है उसने संविधान पढ़ा ही न हो और जो नाम के हैं वे सही तरीके से चुनकर भी गद्दी पर नहीं आये हैं?

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