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यह तो निश्चित है कोई महा शक्ति है जो ब्रह्माण्ड को जैसे चल रहा है,चला रही है. पर वोह क्या है किसी को नहीं पता.ईश्वर की मनुष्य के रूप में कल्पना मनुष्य की ही की हुयी है. उस शक्ति को संसार का हर व्यक्ति अपनी अपनी तरह से परिभाषित करता रहा है.शायद येही संसार में सारे फसाद की जड भी है.वैसे अगर फसाद ही करना ही तो उसके लिए बहाने की ज़रूरत भी क्यों हो.
लेकिन एक बात आज तक मेरी समझ में नहीं आये कि वोह जो इतना शक्तिशाली हो कि विश्व को चलाये क्या वह शीशे का बना हुआ है जो ज़रा ज़रा सी चोट से घायल हो?क्यों लोग समझे हैं किउसके लिए कुछ भी कहने या सुनाने से उसका अपमान होता है.हम यह क्यों नहीं समझ पाते किवह तो इस सबसे परे है. जब कोई उसे पकड़ ही नहीं सकता तो अपमान कैसे करसकता है? अतः यदि कोई कुछ कहता भी है, अपमान करता है या फिर गाली देता है तो इससे उस सर्वशक्तिमान पर क्या असर पड़ता है.
इस मामले में हिंदू बहुत अच्छे हैं. जिनके भगवानों को आक्रान्ताओं ने छः सात सौ बरसों तक मनभर कर तोडा, रौंदा और शायद यह करते करते थक भी गए पर वही भगवान फिर फिर उठखड़े हुए. मैं तो यह भी कहूँगा कि अगर किसी ने एक देवी का अशोभनीय चित्र बना भी दिया तो क्या हुआ और क्यों कुछ सिरफिरों ने उसे देशनिकाला कराडिया.
क्या मनुष्य इस आदम स्थिति से ऊपर नहीं उठ्सकता?
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